रस (हिंदी )
रस
रस का शाब्दिक अर्थ होता है – आनन्द | किसी काव्य को पढने या सुनने से जिस अलौकिक आनंद की प्राप्ति होती है उसे रस कहते हैं|
भरत मुनि के अनुसार - विभाव, अनुभाव, संचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है।
रस के अवयव - रस के 4 अवयव हैं |
(1) स्थायी भाव
(2) विभाव
(3) अनुभाव
(4) संचारी भाव अथवा व्यभिचारी भाव
👉 नोट -
➤ रस को
"काव्य की आत्मा" कहा जाता है|
➤ रसों की कुल संख्या 9 है|
➤ एक रस के मूल में एक स्थायी भाव रहता है अतः स्थायी भावों की कुल संख्या 9 है|
रस के
प्रकार और स्थायी भाव
रस
स्थायी भाव
श्रृंगार रस
रति/प्रेम
हास्य रस
हास
करुण रस
शोक
वीर रस
उत्साह
रौद्र रस
क्रोध
भयानक रस
भय
वीभत्स रस
घृणा
अद्भुत रस
विस्मय/आश्चर्य
शांत रस
शम/निर्वेद
वत्सल रस
वात्सल्य रति
भक्ति रस
भक्ति भावना
👉 नोट -
➤ वत्सल रस और भक्ति रस, श्रृंगार रस के अंतर्गत ही आ जाते हैं इसलिए रसों की संख्या
9 मानते हैं|
➤ आचार्य भरत मुनि रस सिद्धांतों के प्रणेता माने जाते हैं |
➤ संचारी भावों की कुल संख्या 33 मानी जाती है |
➤ श्रृंगार रस को सर्वश्रेष्ठ रस माना जाता है |
➤ भरत मुनि के अनुसार रसों की संख्या 8
है, उनके अनुसार रस सूत्र में शांत रस का उल्लेख नहीं है |
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