इस्लाम धर्म का उदय


इस्लाम धर्म का उदय

7 वीं सदी मे अरब में इस्लाम धर्म का उदय हुआ। इसके प्रवर्तक हजरत मुहम्मद साहब थे।इस्लाम धर्म को स्वीकार करने वाले को मुसलमान कहा गया है। इनका पवित्र ग्रन्थ कुरानहै। यह एकेश्वरवाद पर आधारित है और मूर्तिपूजा का विरोधी है।



हजरत मु0 साहब का जन्म 570 ई०वी० में सउदी अरब के मक्का में हुआ था। इनके पिता अब्दुल्ला इनके जन्म से पहले ही दुनिया से रुकसत हो चुके थे।अतः इनका पालन पोषण इनके बाबा अब्दुल मुत्तलिब ने किया था। जब ये 6 वर्ष के थे  तब इनकी माता अमीना और 13 वर्ष की उम्र में बाबा अब्दुल मुत्तलिब की मृत्यु  हो गयी। अतः इनका पालन पोषण इनके चाचा अबुतालिब ने किया। अबुतालिब कुरैश कबीले के प्रमुख थे और पेशे से व्यापारी थे। अतः मो0 साहब को भी व्यापार का अनुभव प्राप्त हुआ। बाद में खादिजा नाम की एक विधवा ने मो0 साहब से विवाह कर लिया, मो0 साहब को आपना व्यापारिक प्रतिनिध बनाया। विवाह के समय हजरत  मो0 साहब की आयु 25 वर्ष और खादिजा जी की 40 वर्ष थी। इन दोनो से 4 पुत्री उत्पन्न हुयी जिसमें से एक पुत्री फातिमा का विवाह अबुतालिब के पुत्र अली से हुआ था। जो इस्लाम धर्म के चौथे  खलिफा बने थे।

मो0 साहब बचपन से ही एकांत प्रिय थे एक बार हीरा नामक गुफा में बैठे थे, उसी समय देवदूत  जिब्राइल उनके पास आया और कहा कि-अल्लहा  एक है और आप उनके पैगम्बर (प्रतिनिधि) है। इस प्रकार हीरा नामक गुफा मे मो0 साहब का ज्ञान- प्राप्त हुआ।

  ज्ञान प्राप्ति के बाद इन्होने अपना प्रथम उपदेश अपनी पत्नी खादिजा को दिया। जो इनकी  प्रथम शिष्या बनीं। मो0 साहब ने मूर्तिपूजा का विरोध किया। इसलिए मक्का के लोग उससे नाराज हो गये। अतः मो0 साहब को मक्का छोड़कर 622 ई0 में मदीना जाना पड़ा । इसी समय से इस्लाम धर्म में हिजरी सम्मवत् मनाया जाता है। हिजरी शब्द हजरत से बना है जिसका अर्थ होता है – एक स्थान से दूसरे स्थान पर पलायन करना

ध्यान देने योग्य है कि- हजरत मो0 साहब कुरैश कबीले के थे। काबा की सभी मूर्तियों की सुरक्षा करना कुरैश कबीले का दायित्व था।आजा काबा इस्लाम धर्म का एक पवित्र स्थल है।

प्रत्येक मुस्लमान के 5 मुख्य कर्तव्य बताये गये है जो इस प्रकार हैं।

कलमां- अल्लाह एवं पैगम्बर मो0 साहब में विश्वास करना

जकात – यह एक धार्मिक कर था जो इस्लाम धर्म के लोगो से लिया जाता  था और इस्लाम धर्म पर खर्च किया जाता था।

नमाज- प्रत्येक मुसलमान को दिन में 5 बार नमाज पढ़ना चाहिए।

रोजा- रमजान के महीने में 30 दिन का व्रत करना। यह व्रत सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक चलता है।

हज- प्रत्येक मुसलमान को अपने जीवन में एक बार मक्का की यात्रा करनी चाहिए जिसे हज कहा जाता है।

इस्लाम धर्म एकता पर आधारित था परन्तु हजरत मो0 साहब की मृत्यु के बाद शिया और सुन्नी दो सम्प्रदायो मे विभाजित हो गया। शिया संम्प्रदाय के लोग वंशानुगत थे और चौथे खलीफा अली को मो0 साहब के बाद अगले खलीफा के रुप मे स्वीकार करते हैं।

जबकि सुन्नी सम्प्रदाय के लोग लोकतांत्रिक विचार धारा में विश्वास करते थे और ये लोग अबुवक्र को इस्लाम धर्म के पहले खलीफा के रुप मे स्वीकार करते हैं। ध्यान देने योग्य हैं कि – मो0 साहब के बाद पहले खलीफा अबुवक्र हुए थे उसके बाद उमर, उस्मान, अली बने थे।

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